रविवार, 13 मई 2012

कालसर्प योग से भयभीत न हों



- पं. सत्यप्रकाश दुबे शास्त्री

कालसर्पयोग दोष से पीडि़त व्यक्ति आज चारों ओर भयभीत दिखाई दे रहा है। वह तांत्रिकों, ओझाओं व ढोंगी पंडितों के चक्कर में पड़कर धन व समय बरबाद करता रहता है, जबकि कालसर्प योग के आने से कतई नहीं घबराना चाहिए। पहले आप देंखे कि आपकी जन्मपत्रिका में कालसर्प है भी या नहीं अथवा किसी ने यूं ही बता दिया है जिससे आप खुद ही परेशान हैं। देखें - आपकी जन्म पत्रिका में बारह राशियों के बारह स्थान होते हैं जिसमें राहु-केतु सदा एक दूसरे से सातवें सन पर ही होते हैं। जब राहू-केतु किसी एक ओर अन्य कोई सात ग्रह एक तरफ आ जायें तो ऐसा योग ही कालसर्प योग कहलाता है। ऐसे कालसर्प योग व्यक्ति का जीवन संघर्षमय कटता है। इसके 3 भेद होते हैं - 1. इष्टïकारक 2. अनिष्टï कारक 3. मिश्रित।
कभी-कभी कालसर्प पीडित व्यक्ति सहज तरीके से नहीं वरना महासंघर्ष करके धन तथा सर्वोच्च पद भी प्राप्त कर लेता है तथा सर्वोच्च पद होने पर भी उसके जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कालसर्प योग बहुच ऊंचाई अथवा बहुत नीचे ले जाता है। लेकिन इससे भयभीत नहीं होना चाहिए।
    कालपर्स योग की दशा में महामृत्युंजय पाठ, भगवान शिव का रुद्राभिषेक व पूजा-पाठ नित्य करने से इसका दोष कम हो जाता है। महामृत्युंजय का जाप योग्य पंडित द्वारा ही कराया जाना उचित रहता है। इसके जाप से अकाल मृत्यु, दु:ख-दारिद्र, भय का नाश हो जाता है। जातक को महामृत्युंजय यंत्र भी धारण करना चाहिए। इसके धारण करने से मारकेश, अनिष्टï योग व दुर्घटना योग टल जाता है। मंत्र इस प्रकार है -
ú ह्रïौं जूं स: भूर्भुव स्व:
ú त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिïवद्र्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धांमृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
ú भूर्भुव: स्व: जूं हौं ú

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