रविवार, 13 मई 2012

ज्योतिष रहस्य भ्रम एवं निवारण





    वर्तमान समय में भारतीय ज्योतिष शास्त्र के नाम पर लिखित एवं अलिखित कुछ ऐसी परिभाषायें प्रचलित की जा रही हैं जिसके चलते भारतीय ज्योतिष शास्त्र की गणना एक अन्ध विश्वास के रूप में आने वाले काल खण्ड में की जाने लगेगी - ऐसी संभावना को नकारा नहीं जा सकता - भारतीय ज्योतिष शास्त्र के आधार पर प्रचलित फलित के ज्योतिषाचार्यों, ज्योतिर्विदों और कर्मकाण्डियों के द्वारा एक भ्रम जो बहुत महत्वपूर्ण ढंग से प्रचलित एवं प्रसारित किया जा रहा है वह है कालसर्प योग। राहू और केतु के बीच में समस्त ग्रहों के होने, केतु और राहू के बीच में समस्त ग्रहों के होने से इस योग का फलित किया जा रहा है। कई दवा कम्पनियों द्वारा बड़े - बड़े सर्पों के बीच में श्री शिवजी जी मूर्ति जहर उगलते सैकड़ों मुखों वाले सर्पों के फोटो जो देखते ही भय उत्पन्न करते हैं, प्रचारित किये जा रहे हैं और उस काल सर्प-योग की शांति के लिये विशिष्टï स्थान विशिष्टï पूजा का निर्देश जिसमें हजारों लाखों रूपये का खर्चा होता है, वह निर्धारित स्थान पर जमा करने को जातकों को पहुँचाया जा रहा है। यह एकदम से ज्योतिष शास्त्र के फलितकारों की अज्ञानता को ढंकने का कुप्रयास है क्योंकि जन्म पत्रिका का अवलोकन करने परजब समझ में गोचरफल महादशा फल या कुण्डली के भावों का निर्धारण न आवे तो पितृ दोष - कालसर्प योग या मारकेश बताकर जातक को धमरा कर दिया जाता है।
    कालसर्प योग का वर्णन एवं समाधान आज से 20 वर्ष पूर्व तक किसी भी बड़े ज्योतिषाचार्य या स्थापित पुरातन आचार्यों वराहमिहिर, जैमिनी आदि ने नहीं किया यहां तक कि राहू एवं केतु की गणना गोचर एवं अष्टïकवर्ग में भी स्थान नहीं दिया गया है। राहू एवं केतु की गणना क्योंकि दशा महादशा में की गई इसलिये यह भी नहीं माना जा सकता कि महर्षि पाराशर आदि आचार्यों को राहू और केतु के अस्तित्व का ज्ञान नहीं था। जहाँ तक मेरा मत है कि राहू और केतु की स्वतंत्र सत्ता को इन आचार्यों ने नहीं माना एवं छाया ग्रहों के रूप में दूसरे ग्रहों का प्रभाव लेकर अपना प्रभाव दिखाने की व्यवस्था दी गई है। इस संबंध में महर्षि पाराशर के वृहत्पाराशर होरा शास्त्र के 34 वें अध्याय का निम्नलिखित श्लोक देखें :-
    ''यदभावेश युतौ-वापि यदभाव समागतौ।
      तत् तत् फलानि-प्रबलौ प्रदिशेतां तमौ ग्रहों॥ÓÓ
    ''यदि केन्द्रे त्रिरोणे वा निवेसतां तमौ ग्रहौ।
      नाथे नान्यतरेणाढयौ दृष्टïौ वा योग कार कौ॥ÓÓ
अर्थात् राहू और केतु ये दोनों ग्रह जिस भावेश के साथ अथवा जिस भाव में रहते हैं तद्नुसार ही फल करते हैं। राहू और केतु केन्द्र में हों और त्रिकोणपति से युत या दुष्टï हों अथवा त्रिकोण में हों अथवा केन्द्रपति से युत या दुष्ट हों तो भी ये योग धारक रहते हैं।
    इसलिये इन छाया ग्रहों के राजयोग का फल अन्य ग्रहों की भाँति के स्वामित्व द्वारा नहीं किया जाता क्योंकि इनका किसी भी राशि का स्वामित्व नहीं है। राहू और केतु की परतंत्रता के कारण है अष्टïकवर्ग - होरा पद्धति (दिन की काल होरा) मुहूर्त एवं फलित में नहीं किया जाता। इनका अपना प्रभाव व इनके लिये प्रचलित एवं परम्परागत रूप से शनिवत राहू एवं कुजवत् केतु (मंगल) की तरह किया जाता है। यवनाचार्य के मतानुसार राहू केतु के शुभफल कुण्डली एवं गोचर (चन्द्रमा से) में 1-3-5-7-8-9 तथा 10 स्थानों में शुभ, बाकी में अशुभ होता है।
    उपरोक्त परिभाषा एवं विवरण से ऐसा कहीं पर स्पष्टï नहीं होता कि यह ग्रह इतने वली हैं कि इनके बीच में सप्त ग्रह के आने से कुण्डली के जातक का नुकसान या नाश होता है।
    लेखक का ऐसा अनुभव है कि बड़े-बड़े राष्टï्राध्यक्षों-राजनीतिक नेताओं, फिल्मकारों, जनरलों (मोक्ष दायान) की कुंडली में यह योग रहा और उन्होंने प्रसिद्धि के कीर्तिमान स्थापित किये। उदाहरण के लिये पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय जवाहरलाल नेहरू की कुंडली प्रस्तुत है :-

कुंडली जवाहरलाल नेहरू




श्री कृष्ण ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र शक्तिपुरम शिवपुरी के संस्थापक आचार्य पुरुषोत्तम दास गुप्त (पी.दास) के शोध में वास्तविक अर्थ यह है कि ज्योतिष के महान आचार्यों ने प्रकृति एवं ज्योतिष का एक बड़ा गहरा रिश्ता स्थापित करके सूर्य को केन्द्र मानकर एवं 6 ग्रहों को जो पृथ्वी की आकाशगंगा में सूर्य की आकर्षण शक्ति एवं अपनी स्वयं की ऊर्जा के आधार पर अपनी धुरी पर घूम रहे हैं एवं सूर्य के साथ प्रभाव लेकर पृथ्वी की व्यवस्था को प्रकाश एवं ऊर्जा के माध्यम से संचालित कर रहे हैं एवं विशिष्ट नक्षत्रों से गुजरते हुये अपना प्रभाव दिखाते हैं। उसको ही परिभाषित किया है। पंचांगों में प्रतिदिन की कालहोरा का आधार लें तो सूर्य से शनि तक ढाई घटी अर्थात 1-1 घंटे की 7 होरा प्रतिदिन मार्गों के लिये ली जाती है। इसमें कहीं भी राहू केतु को स्थान नहीं है।
    प्रत्येक ग्रह की दिशायें निर्धारित है किन्तु राहू केतु की कोई दिशा निर्धारित नहीं है। जिस प्रकार से पाराशरी पद्धति में दशाओं के लिये राहू केतु की स्थिति ली गई है उसी प्रकार से हथिया भारत में प्रत्येक दिन के लिये राहू काल कुबेला का वर्णन है। किन्तु किसी भी प्रकार से राहू एवं केतु जो वर्तमान में मेष एवं तुला राशि में क्रमश: चल रहे हैं और एक वर्ष के लगभग ये काल सर्प योग बारबार 3 चार माह के लिये भागा 15 दिनों के लिये जब चन्द्रमा वृश्चिक से मीन राशि तक भ्रमण करता है यह योग नहीं रहता, तो क्या इस वर्ष विश्व में जन्म लेने वाले लगभग 30 करोड़ जातक दुखी परेशान एवं असफल रहेंगे, क्या 2004 में सन्दर्भित स्थिति के जातक दुर्भाग्यशाली हैं।
    इस कालसर्प योग पर शोध करने पर ज्ञात हुआ कि भारतीय ज्योतिष में प्रत्येक ग्रह की आदमी के जीवन काल के महत्वपूर्ण पक्षों के निर्माण के लिये ग्रहों की आयु का प्रमाण किया गया है। बृहस्पति 16 वर्ष सूर्य 22 वर्ष चन्द्रमा 24-25 वर्ष मंगल 28 वर्ष बुध 30 वर्ष शुक्र 32 वर्ष शनि 36 वर्ष राहू 42 वर्ष केतु 48 वर्ष रहता है।
    जब जब भी कालसर्प योग वाले जातकों को लेखक ने परेशान एवं दुखी एवं असफल होते देखा है वह वर्ष खंड या तो 42 से 48 वर्ष राहू का समय, 48 से 54 वर्ष केतु के समय देखा है। लेख की एक प्रसिद्ध भविष्यवाणी जो पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव के बारे में एक दैनिक समाचार पत्र में छपी थी उसमें एक श्लोक का संदर्भ देकर यह कहा गया था कि श्री नरसिंहराव कांग्रेस को डुबा देंगे - उसका कारण यह था कि उस समय श्री नरसिंहराव की राहू की महादशा प्रारंभ हुई थी (दिनांक 25.05.1995 से) और उसी राहू की अन्तर्दशा चल रही थी। श्लोक के साथ नरसिंहराव की कुंडली भी दी जा रही है :-

कुंडली
पी.वी. नरसिंहराव


द्वितीय भाव में राहू

श्लोक
    धन गते रविचन्द्र विर्मदने
    मुखतांकित भावयुतो भवेत्
    धन विनाशकरो हि दरिद्रतां
    स्व सुदृदां न करोति वचोग्रहाम
अर्थात् - जो धन स्थान में राहू हो तो वह पुरुष मुखरता से अंकित भाव से युक्त हो तथा धन का नाश करने वाला दरिद्री हो और अपने मित्रों का कथन न मानने वाला होता है।
अष्टïम स्थान पर राहू की दृष्टिï - 
निधनवेश्वनि राहू निरीक्षते वंशहानि बहुदुखितो नर:।
व्याधि दु:ख परिपीडि़तोऽथवा नीचकर्म कुरतेऽत्र जीवित:॥
    अष्टïम भाव पर राहू की दृष्टिï हो तो वंश हानि और वह पुरुष बहुत दुखी होता है। व्याधि के दु:ख से पीडि़त हो और अपने जीवन में नीचकर्म करने वाला होता है।
    उपरोक्त 25-5-95 के बाद चुनावों से पूर्व नरसिंहराव ने अर्जुनसिंह एवं स्व. महाराज माधवराव सिंधिया एवं वरिष्ठï नेताओं पर हवालाकाण्ड एवं अन्य आरोप लगाकर पार्टी से निकाला एवं कांग्रेस का चुनाव में सफाया करा दिया।
    लेखक का राहू और केतु के बारे में स्पष्टï रूप से यह मानना है कि जि मार्ग पर पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है या कहिये कि सूर्य पृथ्वी की परिक्रमा करता है, वह क्रांतिवृत एवं चन्द्रमा का पृथ्वी के चारों ओर का मार्ग वृत (अक्ष) ये दोनों जिन बिन्दुओं पर एक दूसरे को काटते हैं उनमें से एक का नाम राहू और दूसरे का नाम केतु है। आकाश के उत्तर की ओर बढ़ते हुये चन्द्रमा की कक्षा जब सूर्य को काटती है तब उस सम्पात बिन्दु को राहू और दक्षिण की ओर बढ़ते हुए चन्द्रमा की कक्षा जब सूर्य की कक्षा को पार करती है उस सम्पात बिन्दु को केतु कहते हैं।
    उपरोक्त परिभाषा से स्पष्टï है कि ये दोनों सम्पात बिन्दु हैं और इसी आधार पर जब सभी ग्रह परिक्रमा पक्ष पर इन बिन्दुओं के बीच में आते हैं तब उसी को काल सर्प योग बोला जाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि जब भी व्यक्ति के पुण्यों का फल समाप्त होकर संचित पाप उदय होते हैं जो इसी जीवन में किये हुये होते हैं उस समय जब भी राहू केतु की दशा अन्तरदशा या गोचर विपरीत आता है तब व्यक्ति भय एवं भ्रम का शिकार होता है। इस समय का साधारण उपचार है। मूलत: भय निवारण हेतु अध्यात्म ज्योतिष में श्री हनुमान जी की उपासना से ज्ञान प्राप्त होता है। वहीं राहू केतु को धार्मिक आधार पर नष्टï करने का कार्य श्री विष्णु ने मोहिनी रूप रख कर किया था।
    अत: विष्णु को प्रिय चंदन (सफेद) की माला को धारण करना एवं अगर मृत्यु भय हो तो श्री शिव स्त्रोत चालीसा का पाठ या रुद्री के पाठ के साथ सोम प्रदोष या चतुर्दशी को रुद्राभिषेक करवाने से सर्व प्रकार की शांति होती है।
    अंत में पाठकगणों-विद्वानों से यह विशेष अनुरोध है कि कालसर्प योग या आंशिक कालसर्प योग के भ्रम में फंसकर अपना जीवन नष्टï न करें। ''प्रारब्ध पहले बना पीछे बना शरीरÓÓ यह सनातन धर्म की स्थापित मान्यता है। अपने इष्टïदेव की पूजा एवं सत्कर्म ऐसे विपरीत समय में करें, ऐसा समय दो या तीन वर्ष के लिये अवश्य प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आता है। अत: उपरोक्त उपचार या साधन से स्वस्थ एवं प्रसन्न होकर उत्साह पूर्वक जीवन यापन करें।



पुरुषोत्तमदास गुप्त 'पी.दास
शक्तिपुरम, (खुड़ा), शिवपुरी म.प्र.
फोन - 07492 - 233292
मोबाइल - 94251-37868
   
   

   
   




   






   

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