मंगलवार, 27 नवंबर 2012

अपनी उलझी समस्याओं को सुलझाएं



शक्तियों का साक्षात चमत्कार
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि कलियुग में शक्तियों का साक्षात चमत्कार देखने को मिलता है। किसी भी जातक ने थोड़ी सी भी पूजा-अर्चना कर ली उसे तुरंत लाभ मिलता है। अगर आप भी किसी भी समस्या से घिरे हैं और तत्काल निदान चाहते हैं तो शक्तियों का अद्भुत चमत्कार अनुभव कर सकते हैं। अगर आपको बाकई ढोंगी तांत्रिकों, बाबाओं, जादू-टोना वालों से बेहद तंग और परेशान हो चुके हैं तो सच्ची शक्तियों की कृपा प्राप्त कर अपनी उलझी हुई समस्याओं का निदान प्राप्त कर जीवन को खुशहाल बना सकते हैं। एक बार आपने शक्तियों की विशेष कृपा प्राप्त कर ली तो आपका जीवन धन्य हो जाएगा। हर जातक के जीवन में अनेकानेक समस्याएं आती रहती हैं उन से वह कुछ समय के लिए छुटकारा तो पा लेता है लेकिन कई समस्याएं ऐसी हैं जो जिंदगी भर जातक इनसे छुटकारा नहीं पा सकता। रोजाना का पारिवारिक कलह, पति-पत्नी में मन-मुटाव, आसपास के पड़ोसियों की द्वेष भावना, ऊपरी हवा का चक्कर, जमीन-जायदाद, कोर्ट-कचहरी, प्रेम में विफलता, तलाक की नौबत, धन की बेहद तंगी, बेरोजगार, सास-बहू में अनबन, किसी भी काम में मन नहीं लगना, बीमारियों का पीछा नहीं छूटना, शत्रुता जैसी समस्याएं हर जातक को घेरे रहती हैं। अगर आप इन सभी का सटीक निदान चाहते हैं तो एक बार जरूर संपर्क करें।

- पंडित राज
चैतन्य भविष्य जिज्ञासा शोध संस्थान
एमआईजी-3/23, सुख सागर, फेस-2
नरेला शंकरी, भोपाल -462023 (मप्र), भारत
मोबाइल : +91-8827294576
ईमेल : panditraj259@gmail.com

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

ब्रह्माण्ड नायिका महालक्ष्मी की आलोक मणी है- दीपमाला


अभिमान की लहरों पर बैठी आस्था कांच का घर है। सत्ता लोलुपता की पराकाष्ठा आत्मघात की ओर बढ़ रही है। ऐसे समय में कम से कम परमात्मा का पता चल जाना चाहिए, जो तुम्हारे भीतर ही बसा हुआ है। विश्व को समग्रता में देखना और समझना है तो आस्था, विश्वास और कर्म को स्वीकार करना होगा। आस्था और विश्वास सृष्टिकत्र्ता के धर्म चक्र  हैं। सृष्टि के आगार में विभाजन नहीं, समग्रता है। श्रद्धा हर धड़कन को पहचानती है। हर मुद्रा उससे अनदेखी नहीं है। मौन की भी एक भाषा है और अर्थपूर्ण अगाध अर्थों का भण्डार है। मानव इसीलिए समाज प्रिय है, क्योंकि श्रद्धा और विश्वासों तथा आस्थाओं के मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और गिरजाघर आज भी आलोकित हैं। प्रेम के क्षणों में कोई अर्थ नहीं खोजे जा सकते, अर्थों का आग्रह तो विवाद के लिए है। आज की आस्थाओं की केन्द्र हंै- दरगाहें। आध्यात्मिक दस्तावेज आज भी समय के हस्ताक्षर हैं। प्यार और आत्मीयता से ही सृष्टि का सौन्दर्य निखरता है। तो आइए, दीपोत्सव की प्रकाश बेला में हम सृष्टिकत्र्ता से वार्तालाप करें। आपके सुख और वैभव की कामना हेतु श्रीसमृद्धि की देवी मां लक्ष्मी जी की आराधना करते हुए दीपमालिका का महोत्सव मनाएं। ब्रह्माण्ड नायिका महामाया लालित्यमयी मां लक्ष्मी जी के पूजन की विधियां जो अनंत एवं व्यापक हैं। मां लक्ष्मी के श्रद्धालुजनों के हितार्थ संक्षिप्त विधि विधान सहित दीपमालिका के पुण्य महापर्व पर पूजन विधि समर्पित है।
- गृह मंदिर में पंच देव पूजा : घर में पूजा स्थल में प्रवेश करने के पूर्व बाहर दरवाजे पर ही आचमन कर लें और तीन बार तालियां बजाएं और विनम्रता के साथ पूजा स्थल (पूजा घर) में प्रवेश करें।
- पूजन सामग्री व्यवस्था : पूजन सामग्री किस ओर रखना चाहिए, इस बात का भी शास्त्र ने निर्देश दिया है। इसके अनुसार पूजन सामग्री को यथा स्थान सजा देना चाहिए। बायीं ओर - (1) सुवासित जल से भरा कलश (उद्कुम्भ) (2) घंटा (3) धूपदानी (4) तेल के दीपक 21, 31 या अधिक दायीं ओर - (1) घृत (घी) का दीपक (2) सुवासित जल से भरा शंख सामने (1) कुं कुम (केसर) और कपूर के साथ घिसा गाढ़ा चंदन (2) पुष्प (3) ताम्रपात्र तथा पूजन की अन्य सामग्री रखें। भगवान के सामने (आगे) चौकोर जल का घेरा डालकर नैवेद्य की वस्तुएं रखें। पूर्वामुखी अथवा उत्तराभिमुखी हो, आचमन कर अपने ऊपर तथा पूजन सामग्री पर
- मंत्र पढ़कर जल छिड़कें
मंत्र - ऊँ अपवित्र: पवित्रो वां सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
य: स्मरेत् पुण्डरीकांक्ष स बाह्मभ्यन्तर: श्ुाचि:।।
-  कलश स्थापना : कलश पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर कलश के गले में तीन धागा वाली मौली (रक्षा सूत्र) लपेटें। कलश स्थापना भूमि अथवा पाटे पर कुंकुम अथवा रोली से अष्ट दल कमल बनाएं। कलश में सुपारी, द्रव्य, दूब, पांच प्रकार के पत्ते, कुश आदि सुवासित जल में रख दें।
-   कलश (उदकुम्भ) की पूजा सुवासित जल से भरे हुए उदकुम्भ (कलश) की 'उद् कुम्भाय नम:Ó इस मंत्र से चन्दन, पुष्प, अक्षत (चावल) से पूजा कर उसमें तीर्थों के जल, चारों वेदों, तीर्थों, नदियों, सागरों, देवी-देवताओं का आवाहन करने के पश्चात् अक्षत और पुष्प कलश के पास छोड़  दें।
-  मंत्र
कलशस्य मुखे विष्णु: कण्ठे रुद्र: समाश्रित:।
मूले त्वस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मातृगणा: स्मृता:।।
कुक्षौ तु सागरा: सर्वे सप्तद्वीपा वसुन्धरा।
ऋ वेदोऽथ युजुर्वेद: सामवेदो ह्यथर्वण:
अंगेश्च सहिता: सर्वे कलशं तु समाश्रिता:।
अत्र गायत्री सावित्री शान्ति: पुष्टिकरी तथा।।
आयान्तु देव पूजार्थं दुरितक्षयकारका:।।
गंगे च यमुने चैव गोदावरि सरस्वति।
नर्मदे सिन्धु कावेरि जलेऽस्मिन संनिधिं कुरू।।
सर्वे समुद्रा: सरितस्तीर्थानि जलदा नदा:।
आयान्तु मम शान्त्यर्थं दुरितक्षयकारका:।।
(आवाहन के पश्चात् कलश के मुख पर पूजित नारियल रख दें)
रू    शंख पूजन : शंख में दो दूर्वा, तुलसी और पुष्प डालकर ऊँ कहकर उसे सुवासित जल से भर दें। फिर निम्न मंत्र पढ़कर शंख में तीर्थों का आवाहन करेंं -
2    मंत्र- पृथिव्यां यानि तीर्थानि स्थावराणि चराणि च।
        तानी तीर्थानि शंखेऽस्मिन् विशन्तु ब्रह्मशासनात।।
अब शंखाय नम:, चन्दनं समर्पयामि कहकर, चन्दन लगाएं, तत्पश्चात् शंखाय नम: पुष्पं समर्पयामि कहकर पुष्प चढ़ाएं। देव पूजन में वेद मंत्र फिर आगम मंत्र और बाद में नाम मंत्र का उच्चारण किया जाता है। पूजा पात्रों को यथा स्थान पर रखकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके-आसन पर बैठकर तीन बार आचमन करना चाहिए। (1) ऊँ केशवाय नम: (2) ऊँ नारायणाय नम: (3) ऊँ माधवाय नम: आचमन के बाद बायें हाथ में जल लेकर दाहिने हाथ से अपने ऊपर और पूजन सामग्री तथा पूजन स्थल पर बैठे श्रद्धालुओं पर जल छिड़कना चाहिए।
- स्वस्ति वाचन
श्री मन्महागणाधिपतये नम:। श्री लक्ष्मी नारायणभ्यां नम:।।
-  पंचदेव पूजन विधि : हाथ में पुष्प, अक्षत आदि लेकर निम्न मंत्रों का जाप कर वेदी पर चढ़ाएं -
(1) श्री मन्ममहागणाधिपतये नम:
(2) लक्ष्मी नारायणाभ्यां नम:
(3) उमा महेश्वराभ्यां नम:
(4) मातृ-पितृ चरणकमलेभ्यो नम:
(5) इष्ट देवताभ्यो नम:
(6) कुल देवताभ्यो नम:
(7) ग्राम देवताभ्यो नम:
(8) वास्तु देवताभ्यो नम:
(9) सर्वेभ्यो देवेभ्यो नम:
-  महालक्ष्मी पूजन विधि : भगवती लक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य, अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं। भगवान श्रीगणेश सिद्धि, बुद्धि एवं शुभ और लाभ के स्वामी हैं तथा सभी अमंगलों एवं विघ्नों के नाशक हैं। ये सत-बुद्धि प्रदान करने वाले हैं। अत: इनके समवेत पूजन से सभी कल्याण-मंगल एवं आनंद प्राप्त होते हंै। पूजन के लिए किसी चौकी या कपड़े के पवित्र आसन पर गणेश जी के दाहिनी ओर माता महालक्ष्मी की स्थापना करना चाहिए। प्रतिष्ठा - बायें हाथ में अक्षत लेकर निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन अक्षतों को गणेश जी की प्रतिमा (चित्र) पर छोड़ते जाएं। भगवान गणेश का ध्यान करें-
2    मंत्र - गजानंन भूतगणादि सेवतं कपित्थ जम्बूफल चारू भक्षणम।
    उमा सुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम।।
इसके पश्चात् प्रधान पूजा में भगवती महालक्ष्मी का पूजन करें।
ध्यान मंत्र - (आवाहन)
सर्व लोकस्य जननीं सर्व सौख्यप्रदायिनीम्।
सर्वदेवमयीमीशां देवीभावाहयाभ्याहम्।।
ऊँ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम्।।
आवाहन के लिए पुष्प लें-
2    मंत्र- ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। महालक्ष्मी मावाहयामी,
आवाहनार्थे पुष्पाणि समर्पयामी। (आवाहन के लिए पुष्प लें)
आसन के लिए - (कमल आदि पुष्प लें)
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। आसनं समर्पयामी
(आवाहन के लिए कमलादि पुष्प अर्पित करें)
पाद्य -
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। पादयो: पाद्यं समर्पयामि।
(चन्दन-पुष्पादियुक्त जल अर्पित करें)
अघ्र्य -
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। हस्तयोरध्र्यं समर्पयामी।
(अष्टगंध मिश्रित जल अध्र्य पात्र से देवी जी के हाथों में दें)
आचमन -
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। आचमनीयं जलं समर्पयामी
(आचमन के लिए जल चढ़ावें)
स्नान -
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। स्नानं जलं समर्पयामी।
(शुद्ध जल से मंत्रोच्चार के साथ स्नान करावें)
दुग्ध स्नान -
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। पय: स्नानं समर्पयामी।
पय: स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानानं समर्पयामी।
(दूध से स्नान कराने के बाद पुन: शुद्ध जल से स्नान करावें)
दधि स्नान -
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। दधि स्नानं समर्पयामी।
दधि स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामी।
(दही से स्नान कराने के बाद पुन: शुद्ध जल से स्नान करावें)
घृत स्नान-
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। घृत स्नानं समर्पयामी।
घृत स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामी।।
(घी से स्नान कराने के बाद पुन: शुद्ध जल से स्नान करावें)
मधु स्नान (शहद)
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। मधु स्नानं समर्पयामी।
    मधु स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामी।।
(मधु स्नान के बाद पुन: शुद्ध जल से स्नान करावें)
शर्करा स्नान (शक्कर)
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। शर्करा स्नानं समर्पयामी।
शर्करा स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामी।।
(शर्करा स्नान के बाद पुन: शुद्ध जल से स्नान करावें)
पंचामृत स्नान-
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। पंचामृत स्नानं समर्पयामी।
पंचामृत स्नानान्ते शुद्धोदक स्नानं समर्पयामी नम:।।
(पंचामृत से स्नान कराने के बाद पुन: शुद्ध जल से स्नान करावें)
मां लक्ष्मी जी को स्नान कराने के पश्चात् प्रतिमा का अंग-प्रोक्षण कर शुद्ध पीले या लाल वस्त्र की आसनी पर उन्हें विराजमान करें।
वस्त्र
2    मंत्र- ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। वस्त्रं समर्पयामी (वस्त्र अर्पित करें)
आभूषण
2    मंत्र- ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। नानाविधानी कुण्डलकटकादीनि
आभूषणानि समर्पयामि।
(आभूषण समर्पित करें)
सिन्दूर चढ़ावें
2    मंत्र- ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। सिन्दूरं समर्पयामि
(देवीजी को सिन्दूर चढ़ावें)
कुंकुम अर्पित करें
2    मंत्र - कुंकुम कामदं दिव्यं कुंकुम कामरूपिणम्।
अखण्डकाम सौभाग्यं कुंकुमं प्रतिगृहयताम्।।
ऊँ महालक्ष्म्यै नम: कुंकु म समर्पयामि।
(कुंकुम अर्पित करें)
पुष्पसार (इत्र) अर्पित करें -
2    मंत्र- तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च।
मया दत्तानिलेपार्थं गृहाण परमेश्वरि।
(सुगंधित तेल एवं इत्र चढ़ावें)
अक्षत अर्पित करें
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। अक्षतान् समर्पयामि।।
(कुं कुमयुक्त अक्षत अर्पित करें)
पुष्पमाला चढ़ावें -
2    मंत्र - माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो।
मयानीतानि पुष्पाणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम।।
ऊँ मनस: काममाकूतिं वाच: सत्यमशीमहि।
पशूनां रूपमन्न्स्यमयि श्री: श्रयतं यश:।।
(पुष्प तथा पुष्पमालाओं से अलंकृत करें यथा संभव लाल कमल के
फूलों से)
दूर्वा चढ़ावें
2    मंत्र - विष्णवादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वेसुशोभनाम्।
क्षीरसागरसम्भूते दूर्वां स्वीकुरू सर्वदा।।
ऊँ महालक्ष्म्यै नम:। दूर्वाअंकुरान समर्पयामी
(मंत्र जाप के साथ दूर्वा चढ़ावें)
अंग पूजा - रोली, कुंकुम मिश्रित अक्षत-पुष्पों से निम्नांकित एक-एक मंत्र पढ़ते हुए अंग पूजा करें।
(1) ऊँ चपलायै नम:, पादौ पूजयामि।
(2) ऊँ चंचलायै नम:, जानुनी पूजयामि।
(3) ऊँ कमलायै नम:, कटि पूजयामि।
(4) ऊँ कात्यायन्यै नम:, नाभिं पूजयामि।
(5) ऊँ जगन्मात्रे नम:, जठरं पूजयामि।
(6) ऊँ विश्ववल्लभायै नम:, वक्ष: स्थलं पूजयामि
(7) ऊँ कमलावासिन्यै नम:, हस्तौ पूजयामि
(8) ऊँ पदमाननायै नम:, मुखं पूजयामि।
(9) ऊँ कमलापत्राक्ष्यै नम:, नेत्रत्रयं पूजयामि
(10) ऊँ श्रियै नम: शिर:, पूजयामि
(11) ऊँ महालक्ष्म्यै नम:, सर्वांग पूजयामि
-  अष्ट लक्ष्मी पूजन : तदोपरान्त पूर्वादि क्रम से आठों दिशाओं में महालक्ष्मी के पास कुंकुमायुक्त अक्षत तथा पुष्पों से एक-एक मंत्र (के जाप) पढ़ते हुए आठ लक्ष्मियों का पूजन करें -
(1) ऊँ आद्यलक्ष्भ्यै नम:
(2) ऊँ विद्यालक्ष्भ्यै नम:
(3) ऊँ सौभाग्यलक्ष्भ्यै नम:
(4) ऊँ अमृतलक्ष्भ्यै नम:
(5) ऊँ कामलक्ष्भ्यै नम:
(6) ऊँ सत्यलक्ष्भ्यै नम:
(7) ऊँ भोगलक्ष्भ्यै नम:
(8) ऊँ योगलक्ष्भ्यै नम:
धूप अर्पित करें
2    मंत्र - ऊँ लक्ष्भ्यै नम: धूपमाध्रापयामि। (धूप दें) दीप पूजन (दीपोत्सव) कृपया, ध्यान रखें- दीपावली पूजन को दीपोत्सव भी कहते हंै। इसमें कम से कम 11, 21 या अधिक दीप प्रज्ज्वलित किये जाने चाहिए। किसी पात्र में (पीतल/स्टील का पात्र)। मंत्र के साथ- ऊँ दीपावल्यै नम: के साथ दीपों का गन्धादि उपचारों द्वारा - पूजन कर निम्न मंत्रों का जाप करें तथा पूजनोपरान्त धान का लावा इत्यादि पदार्थ गणेशजी, महालक्ष्मी जी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को अर्पित कर सभी दीपों को प्रज्ज्वलित कर पूजास्थल को अलंकृत कर दें।
(1) ऊँ लक्ष्म्यै नम:, दीपं दर्शयामी
(2) ऊँ गं गणपतये नम:, दीपं दर्शयामी
(3) ऊँ नारायणाय नम:, दीपं दर्शयामी
(4) ऊँ शिवाय नम:, दीपं दर्शयामी
(5) ऊँ ब्रह्मणे नम:, दीपं दर्शयामी
(6) ऊँ सरस्वतै नम:, दीपं दर्शयामी
(7) ऊँ महिषमर्दिनी नम:, दीपं दर्शयामी
(कलश के चारों ओर नवग्रहों हेतु दीपक रखे, मंत्र जाप के साथ)
(1) ऊँ सूर्याय नम:, दीपं दर्शयामी
(2) ऊँ चन्द्रमाये नम:, दीपं दर्शयामी
(3) ऊँ भौमाय नम:, दीपं दर्शयामी
(4) ऊँ बुधाय नम:, दीपं दर्शयामी
(5) ऊँ बृहस्पतयै नम:, दीपं दर्शयामी
(6) ऊँ शुक्राय नम:, दीपं दर्शयामी
(7) ऊँ शनैश्चराय नम:, दीपं दर्शयामी
(8) ऊँ राहवे नम:, दीपं दर्शयामी
(9) ऊँ केतवे नम:, दीपं दर्शयामी
नैवेद्य निवेदित कर- जल अर्पित करें
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम: नैवेद्यं निवेदयामि, मध्ये पानीयम, उत्तराषोऽशनार्थं हस्त प्रक्षालनार्थं, मुख प्रक्षालनार्थं च जलम् समर्पयामि
आचमन - मंत्र के साथ आचमन के लिए जल लें
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:, आचमनीयं जलं समर्पयामि।
(नैवेद्य निवेदन करने के पश्चात् आचमन के लिए जल लें)
ऋ तुफल - मंत्र के साथ मां लक्ष्मी जी को ऋतु फल अर्पित कर आचमन हेतु जल लें।
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम: अखण्ड ऋ तुफलं समर्पयामि।
आचमनीयं जलं च समर्पयामि।।
मिष्ठान - मंत्र के साथ मां लक्ष्मी जी को मिष्ठान अर्पित करें।
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:, मिष्ठानं समर्पयामि।
ताम्बूल - (पूंगीफल) - मां लक्ष्मी जी को इलायची, लोंग, सुपाड़ी ताम्बूल (पान) अर्पित करें, इस मंत्र के साथ
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम: मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि।
दक्षिणा - परिवार/व्यवसाय स्थल पर सभी उपस्थित जन दक्षिणा चढ़ावें, मंत्र जाप के साथ।
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम:, दक्षिणां समर्पयामि
प्रदक्षिणा (हाथ जोड़कर)-
2    मंत्र - यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।
तानि सर्वाणिनश्यन्तु प्रदक्षिणपदे-पदे।
प्रार्थना (हाथ जोड़कर)
2    मंत्र - ऊँ महालक्ष्म्यै नम: प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि।
(प्रार्थना करते हुए नमन करें)
पूजन के अंत में - (समर्पण)
2    मंत्र - कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम् न मम।
(यह मंत्र उच्चारण कर समस्त पूजन कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करें तथा जल गिराएं। उपस्थित जनों को तिलक लगाएं और हाथ में मौली बांधें।)
2    आरती - मां महालक्ष्मी जी आरती करें सभी उपस्थित श्रद्धालुओं के साथ। अन्त में - प्रसाद वितरण कीजिए।
धनतेरस-दीपावली शुभ मुहूर्त
दीपावली का शुभारभ धनतेरस को दीप जलाकर करते हैं। धनतेरस तिथि का शुभ मुहूर्त 11.11.2012, रविवार को प्रात: 10 बजे से 12.11.2012, सोमवार को
प्रात: 8.15 मिनट तक, तदोपरांत छोटी दीवाली (नरक चैदस)। दीपावली 13.11.2012
को प्रात: 6.15 से रात्रि अन्त तक। 14.11.2012 को गोवर्धन पूजा।
लक्ष्मीपूजन का मुहूर्त 13 नवम्बर, 2012 दिन मंगलवार को सांय 5.15 से
रात्रि 2.20 तक। पूजन का विशेष शुभ मुहुर्त रात्रि 7.30 से 9 बजे एवं रात्रि 10.30 से 2.20
के मध्य है।


- पंडित पीएन भट्ट
अंतरराष्ट्रीय ज्योतिर्विद,
अंकशास्त्री एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
संचालक : एस्ट्रो रिसर्च सेंटर
जी-4/4,जीएडी कॉलोनी, गोपालगंज, सागर (मप्र)
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