बुधवार, 9 मई 2012

भूत- एक विश्लेषण

आलेख

- महेश अनघ


    निरक्षर ग्रामीण अंचलों से पैदा हुआ था भूत का किस्सा। क्योंकि तब मनोरंजन के नाम पर केवल किस्से ही हुआ करते थे। किस्सों के रसों में स्त्री पुरुष सम्बन्ध और वीरता अथवा भय ही प्रमुख रहे हैं। यहाँ ध्यान देने की बात यह है कि वीरता और भय एक ही मूल भाव के सकारात्मक-नकारात्मक पहलू हैं। वीरता अर्थात शक्ति प्रदर्शन से दूसरे पक्ष में भय उत्पन्न होता है और भय का परिहार वीरता के अर्जन में होता है। इस तरह भय प्राणी मात्र के चार प्राकृतिक गुणों (आहार, निद्रा, भय, मैथुन) में से एक है। इसीलिए वीरता और भय के किस्से मनुष्य को मानसिक रूप से उद्वेलित करते हैं और इसीलिए यह मनोरंजन का प्रमुख साधन रहा है।
    भय के किस्सों में भूत-प्रेत का किस्सा सबसे ज्यादा रोचक, रोमांचक और आकर्षक है। गांव के किसी दालान में, चौपाल पर या सड़क के किनारे बैठे हुए लोगों में यदि कोई भूत का किस्सा सुना रहा हो तो जरूरी काम से गुजरता हुआ राहगीर भी रुक कर उसे सुनने लगता है। इतना ही नहीं, वह उस किस्से में रुचि लेता हुआ प्रश्नोत्तर भी करता है और इसी से मिलता जुलता अपना अनुभव अथवा दूसरों से सुना हुआ किस्सा वहाँ सुनाने बैठ जाता है।
    इस तरह भूत को हवा लगती है। एक मुख से दूसरे मुख तक होता हुआ भूत का किस्सा गांव से निकल कर कस्बों तथा शहरों में फैल जाता है। क्योंकि शहर में भी मनुष्य ही रहते हैं तथा उनके स्वभाव में भी भय मौजूद रहता है, अत: वे भी इस भूत के किस्से को प्रचालित करने में भरपूर योगदान करते हैं। फिर और आगे बढ़ कर यह किस्सा महानगरों में, विदेशों में पहुँचता है। अमेरिका तथा इंग्लैण्ड जैसे सभ्य कहे जाने वाले देशों की संस्कृति में भी भूत और  प्रेत  अनिवार्य रूप से मौजूद हैं। यह सब इसी बात का परिणाम है कि एक ओर मनुष्य अपनी सीमित शक्ति के कारण भयग्रस्त रहता है तो दूसरी ओर भूत का चित्रण अलौकिक शक्ति सम्पन्न रूप में किया जाता रहा है। और अब तो विज्ञान भी इस क्षेत्र में अपनी सहमति लेकर उपस्थित है। अभी कुछ वर्षों से देखने में  आया है कि कुछ वैज्ञानिकों ने भूत के अस्तित्व पर बाकायदा शोध कार्य किया है, कुछ असाधारण दृश्य कैमरे में कैद किये हैं तथा कुछ ध्वनियां रिकार्ड की हैं। दबी जुवान से कुछ वैज्ञानिक स्वीकार भी करने लगे हैं कि- हाँ, भूत होता है, वह आकार प्रकार और व्यवहार में असाधारण होता है और यह कि मनुष्य को उससे भयभीत रहना चाहिए।
    भूत किसे कहते हैं- इस संदर्भ मे जबरदस्त भ्रांतियां हैं। आमतौर से लोग जो आशय ग्रहण करते हैं, वह यह कि मनुष्य के कद से काफी ऊँचा, डरावना, श्वेत-श्याम बिम्ब होता है, जो अपने क्षेत्र में भीषण उत्पात मचाता है और किसी भी जीवित आदमी की गर्दन मरोड़कर फेंक देता है अथवा छाती पर चढ़कर गला दबा देता है। जो लोग भूत को देखने का दावा करते हैं, या भूत का सुना हुआ सच्चा किस्सा बयान करते हैं, वे लगभग इसी रूप में भूत को जानते  हैं। भूत के आवास क्षेत्र भी आरक्षित हैं, अर्थात् श्मशान, कब्रगाह, पुराना खण्डहर, पुराना पीपल या फिर वह स्थान जहाँ किसी ने आत्महत्या की हो अथवा किसी की हत्या की गयी हो। और यह भूत भी उसी मनुष्य का रूपांतरण है जिसकी हत्या या आत्महत्या हुई हो।
    लेकिन भूत शब्द का अर्थ देखें तो हमारी ये सारी भ्रांतियां समाप्त हो जाती  हैं। संस्कृत की 'भूÓ भव् धातु में 'इत्Ó प्रत्यय के साथ भूत शब्द निष्पन्न होता है, जिसका अर्थ है- वह, जो हो चुका है। इस अर्थ के भी दो प्रकार से आशय लिये जा सकते हैं-एक-वह, जिसका जन्म या अस्तित्व हुआ है, और दो-वह, जिसका अस्तित्व पहले था किन्तु अब नहीं है। इसे उदाहरण से स्पष्टï करें तो पहली श्रेणी में मनुष्य सहित सभी प्राणी, जीव जन्तु आते हैं, जिनका कि जन्म हुआ है। जैसा  कि भगवद्गीता की उक्ति है 'सर्व भूत हिते रता: और ईश्वरों हि सर्वभूतानां हृद्देशे अर्जुन तिष्ठïतिÓ आदि। यहाँ भूत शब्द का स्पष्टï अर्थ  है- प्राणीमात्र। दूसरी श्रेणी में वे तत्व आते हैं जिनका अस्तित्व अब नहीं है, अर्थात् जो विगत हो चुके हैं, जैसे कि भूूतपूर्व भूतकाल -आदि।
    अब, जो मानव समाज में डरावना भूत है, उसे किस श्रेणी में रखेंगे? स्पष्टï रूप से वह दूसरी श्रेणी का शाब्दिक अर्थ है। अर्थात् कोई एक मनुष्य था, जिसकी असाधारण मृत्यु हुई और अब वह भूत योनि में है। यानी, मनुष्य के अस्तित्व का विगत हो जाना ही भूत का अस्तित्व है। यहाँ ध्यान देने की बात  यह है कि जितने भी भूत क हे, सुने या देखे जाते हैं, वे सब किसी न किसी मनुष्य की असाधारण मृत्यु से ही उपजे हैं। कभी किसी बैल का भूत या कौए का भूत या मगर का भूत देखा सुना नहीं गया। इसका कारण यह है कि समस्त प्राणियों में केवल मनुष्य ही बौद्घिक प्राणी है। बुद्घि एवं कल्पना शक्ति के कारण मनुष्य में ही आसक्तियां, वासना, तथा मोह आदि अतिरिक्त गुण होते हैं और ऐसा समझा जाता है कि शरीर छूटने के बाद मनुष्य की चेतना में ये ही आसक्ति वासना आदि गुण साथ रह जाते हैं, जो उसे मृत देह के आसपास वायुमण्डल में भटकाते रहते हैं। इसी आसक्ति युक्त एवं शरीर विहीन चेतना को लोक में भूत समझा जाता है।
    समझा इसलिए जाता है -कि बचपन से ही मनुष्य को भूत प्रेत के विकराल अस्तित्व की कहानियां सुनाकर डराया जाता रहा है और विभिन्न स्थानों पर भूत के देखे जाने का वर्णन करके उन स्थानों पर जाने से वर्जित किया जाता रहा है। इस तरह, कच्ची उम्र से ही मनुष्य के मन में भूत की विश्वसनीयता आरोपित कर दी जाती है, जो धीरे धीरे परिपक्व होने पर अटूट मान्यता में बदल जाती है और मनुष्य में भूत के प्रति एक स्थायी डर बैठ जाता है, ठीक उसी तरह, जिस तरह कि बचपन से ही अवतारों के चरित्र सुना सुना कर ईश्वर की पक्की मान्यता स्थापित की जाती है।
    भूत के अस्तित्च के विषय में वैज्ञानिक लोग किस दृष्टिïकोण और किन तथ्यों के साथ विश£ेषण कर रहे हैं, यह तो मै नहीं जानता, किन्तु मैं एक ठोस तर्क रख रहा हूँ जिस पर प्रत्येक उस व्यक्ति को, जो भूत को मानता है और जो थोड़ा भी समझदार है, विचार अवश्य करना चाहिए।
    सबसे बड़ा सवाल- यह कि भूत यदि देखा जाता है और वह अपनी क्रियाओं द्वारा मनुष्यों को तंग करता है या मार डालता है, तो उसके पास एक शरीर अवश्य होना चाहिए। यह शरीर भूत के पास कहाँ से आया? मानव जैसा शरीर या उसका कोई भी हिस्सा किसी भी तरह बनाया नहीं जा सकता। यदि कोई भूत किसी मृत व्यक्ति का रूपान्तरण है, तो सवाल यह है कि सभी मृत व्यक्तियों के शरीर को या तो चिता में जला दिया जाता है या फिर जमीन में दफना कर गला दिया जाता है। इस तरह मानव शरीर तो राख या मिट्टïी में परिवर्तित हो गया, फिर भूत ने उस मृत शरीर को सक्रिय अवस्था में कैसे प्राप्त किया? और भी, विचार करना चाहिए कि एक बार मनुष्य की मृत्यु हो जाने के बाद उसके शरीर को चैतन्य किया जाना सम्भव नहीं है। यदि यह मान भी लिया जाए कि मृत्यु के बाद आत्मा वायुमण्डल में भटकती है, तो भी, उसी आत्मा का, उसी शरीर में या किसी अन्य शरीर में प्रवेश किया जाना असम्भव है। उदाहरण कि लिए, पानी की एक बंूद को हथेली पर लेकर समुद्र में छोड़ दें, तो पुन: उसी बूंद को वापस हथेली पर नहीं लाया जा सकता। यदि यह भी मान लिया जाए कि शून्य में विचरण करती आत्मा ने अपनी वासना-आसक्ति के आवेग से कोई काल्पनिक रूप धारण कर लिया है, तो सवाल यह है कि जब उसका रूप काल्पनिक या अभौतिक ही है तो वह क्रियाएं कैसे करता है?
    कुल मिलाकर निष्कर्ष यह कि भूत का कोई आकार हो नहीं सकता और भूत कोई क्रिया कर नहीं सकता। इस तरह मैंने भूत देखा और मुझे भूत ने तंग किया- ऐसी सभी उक्तियां मिथ्या हैं तथा केवल मनोविकृति के कारण उत्पन्न होती हैं।
    मनोविकृति क्या है- इस विषय पर व्यावहारिक तरीके से विचार करना चाहिए। जैसा कि ऊपर कहा गया है, भय मनुष्य का स्वभाव है। भय इसलिए होता है क्योंकि मनुष्य अपनी सीमित शक्ति को जानता है और यह भी जानता है कि जो उससे अधिक शक्तिशाली होगा, वह उसे शारीरिक रूप से प्रताडि़त अवश्य करेगा। यही कारण है कि समाज में एक दुर्बल व्यक्ति, सबल व्यक्ति से निरन्तर भयभीत रहता है तथा उससे यथासम्भव बच कर चलता है। यह तो हुई शारीरिक शक्ति की बात। अब यदि यही शक्ति शस्त्र सहित हो तो निहत्था व्यक्ति उस प्रत्येक व्यक्ति से भयभीत रहेगा, जिसके हाथ में बन्दूक, तलवार या फिर छोटा सा चाकू होगा। इस तरह, अपने शरीर की रक्षा के लिए शक्तिमान से भयभीत रहना स्वाभाविक है। किन्तु जब यह शक्ति अलौकिक या असाधारण हो, अर्थात मानवेतर शक्ति से युक्त कोई तत्व सम्मुख हो, तब तो मनुष्य का भय कई गुना बढ़ जाता है। भूत की धारणा ऐसे ही असाधारण शक्ति तत्व के रूप में की गयी है। किस्सों में यह बताया जाता है कि भूत एक पेड़ के बराबर विशाल आकार का है, वह कई मीटर दूर तक अपना हाथ बढ़ा लेता है, वह हवा में उड़ कर अपना शिकार पकड़ लेता है और यह कि वह मनुष्य को मुटïठी में जकड़ ले तो मनुष्य की देह का कचूमर निकल जाता है, आदि आदि।
    तो फिर मनुष्य क्यों न भयभीत हो। बच्चों को जो कुछ बड़ों के द्वारा सिखाया पढ़ाया जाता है उसे वे पूर्ण सत्य ही मान लेते हैं, इसी कारण बचपन में सुने हुए भूत के किस्से और उसका डरावना वर्णन सुनकर बच्चे उसे स्थायी रूप से सच मान लेते  हैं और वही संस्कार बड़े होने पर भी उनके साथ बना रहता है। इस तरह भूत का भय मानव समाज में एक शाश्वत प्रक्रिया बन जाता है । और जब किसी मनुष्य को रात्रि के अंधकार में किसी सुनसान जगह पर या श्मशान में कोई अस्पष्टï सा बिम्ब दिखता है अथवा असहज ध्वनियों का आभास होता है तब उसे भूत समझकर वह अपने प्राण बचाने के लिए भागता है तथा दिन में उस घटना को अतिरंजित करके दूसरों को सुनाता है। जबकि वास्तविकता यह है कि जो कुछ उसे दिखा वह किसी पेड़, खम्भा या जानवर का आकार रहा होगा, जो अंधकार के कारण अस्पष्टï रूप में दिखाई दिया और जो ध्वनि सुनी गयी, वह जरूर किसी वास्तविक कारण से उत्पन्न ध्वनि थी, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया।
    ध्यान इसलिए नहीं दिया जाता- क्योंकि भूत की सम्भावना का ख्याल आते ही मनुष्य अत्यधिक भय से ग्रस्त हो जाता है और उसकी सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती हैं। उसका विवेक काम नहीं करता एवं भयग्रस्त मानसिक दुर्बलता में कोई तर्क उत्पन्न नहंी हो पाता। उस समय उसके साथ भय और केवल भय होता है जो उसे प्राण रक्षा के लिए प्रेरित करता है। तब वह हड़बड़ी में तेजी से भागता है और अंधकार में किसी वस्तु से टकरा कर या उलझकर गिर पड़ता है। उसे चोट लगती है, जिसका जिम्मेदार भूत को ठहराया जाता है। अथवा उस भय की अवस्था में उसका मन इतना कमजोर हो जाता है कि वह अपने मस्तिष्क पर आघात जैसा मेहसूस करता है तथा कई घंटों या कई दिनों तक उस अवस्था से उबर नहीं पाता। इस मानसिक आघात की जिम्मेदारी भी तथाकथित भूत पर थोप दी जाती है।
    यहाँ एक बात और स्पष्टï कर दूँ कि जो लोग यह कहते हैं कि उन्होंने भूत देखा है- वे भी झूठ नहीं बोलते । क्योंकि जैसा महसूस किया, उसे ही वे सच- सच बयान कर रहे होते हैं। आभास का कथन करना झूठ बोलना नहीं कहलाता, किन्तु वह आभास ही झूठ होता है। बस, इतनी सी समझ और विवेक की जरूरत है, भूत से मुक्त होने के लिए।
    और फिर ये इलाज - कोई डाक्टर, वैद्य, हकीम भूत का इलाज नहीं कर सकता। ऐसी मान्यता है कि भूत एक अलौकिक शक्ति है, इसलिए उसका प्रतिकार शक्ति से हो ही सकता है। तब, भूतग्रस्त व्यक्ति को उसके परिजन या तो किसी तांत्रिक -ओझा के पास ले जाता हैं, या फिर हनुमानजी अथवा अन्य किसी स्थानिक देवता के सिद्घ स्थान पर ले जाते हंै। यहाँ भी वही मनोविज्ञान काम करता है। ओझा। तांत्रिक अपनी विशिष्टï शैली में झाड़ फूंक करता है, भूतग्रस्त को डराता धमकाता है, उसके बाल खींचता है, कोड़े लगाता है या फिर शरीर का कोई अंग कस कर दबा लेता है। ऐसा करने से भूतग्रस्त व्यक्ति पर तत्काल यह प्रभाव होता है कि भूत की जिस शक्ति से डर कर वह रोग ग्रस्त हुआ था, उससे भी बड़ी शक्ति को वह अपने सामने अपनी रक्षा के लिए तत्पर पाता है तो उसे एक आश्वस्ति होती है कि भूत अब उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकेगा। इसी आश्वस्ति से उसे मानसिक बल मिलता है और वह अपनी खोयी हुई मनो ऊर्जा को प्राप्त कर धीरे धीरे सामान्य होने लगता है।
    हनुमानजी या अन्य देवी-देवता की शरण में जाने से उस पर और भी तेजी से असर होता है। क्योंकि वह जानता है कि भूत की शक्ति से कई गुना अधिक हनुमानजी  की अलौकिक शक्ति है। इसलिए, देवता के सम्मुख जाते ही वह भूत के भय से मुक्त होने लगता है। उसके मानसिक संस्कारों  के अनुसार, भूत की ताकत पर तो संदेह किया जा सकता है किन्तु हनुमानजी या दुर्गा-काली की  अपार शक्ति संदेह से परे है। अत: वह पूरी तरह आश्वस्त होकर भूत भय से निवृत्त हो जाता है। दूसरी ओर, देवताओं के प्रति उसकी आस्था भी उसके मनोबल को बढ़ाती है, जिसके कारण पूर्व संचित भय जाता रहता है और वह पूर्ण स्वस्थ हो जाता है।
    अब  और क्या कहा जाए। अंतत: यही कि भूत का अस्तित्व किसी न किसी मानसिक दुर्बलता पर ही आधारित है। और यह मानसिक दुर्बलता मनुष्य को पारम्परिक रूप से तर्क विहीन किस्सों से प्राप्त होती है और ऐसे किस्से अपनी रोचकता के कारण आकर्षक तथा बहुप्रचलित होते हैं।
    भूत को भगाने का मेरी दृष्टिï में एक ही उपाय है, जो एकदम सुनिश्चित है, कि यदि लोग यह स्पष्टï धारणा कर लें कि वास्तव में कोई भूत नहीं होता- नहीं होता - नहीे होता, तो विश्वास कीजिए, कहीं भी कोई भूत नहीं होगा- नहीं होगा-नहीं होगा।

सम्पर्क सूत्र - टाइप 3/38 शास्त्री नगर, ग्वालियर-474011

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