रविवार, 13 मई 2012

नारी उत्पीडऩ समस्या व समाधान

- सुशीला मिश्रा
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता:।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो: नम:॥

    भारत वर्ष में नारी की शक्ति रूप में पूजा होती है इसलिये यहाँ माँ सम्मानित और श्रद्धेय मानी गई है। सृजन से लेकर पालन कत्री के रूप में आदर्शों को संस्कार देकर वह पूज्य बन गई है परिवर्तन के साथ-साथ समाज के अनेक रूप बदलते गये प्राचीन काल में वैदिक मंत्रों से लेकर यज्ञों में सहयोग देती रही है।
    मुगल काल में पर्दाप्रथा और अशिक्षा ने उसको कुंठित कर दिया पर अंग्रेजी शिक्षा ने वर्तमान समय में उसमें आत्मविश्वास जगाया है वह समाज परिवार और राष्टï्र के प्रगति में अपना योगदान देने का प्रयास करने लगी है। अब अर्थयुग में अपने अधिकारों और कर्तव्यों को पूरा करने के लिये संघर्षों से उलझती हुई मार्ग बना रही है। बच्चों के भविष्य के लिये शिक्षा और स्वास्थ्य बुनियादी आवश्यकता है बिना धनोपार्जन के स्वास्थ्य जीवन समृद्ध परिवार जिसमें डॉक्टर, वकील, प्रोफेसर आदि सहयोग देकर उसे सुधरने का अवसर दे रहे हैं।
    अनेक पर्तों में जीने वाली नारी उत्पीडऩ का शिकार भी बन रही है -
परिचय इतना/ इतिहास यही/ उमड़ी कलथी
मिट आज चली  - महादेवी वर्मा।
समाज स्वयं नहीं समझ पा रहा है कि वह नारी को किस रूप में देखना चाहता है। आदर्शमाता, पत्नी, बहन या मनोरंजन का साधन, वृद्धावस्था में उपेक्षित माता-पिता कभी अतीत, कभी वर्तमान को जोड़कर आँसू बहाते हैं। कुछ अच्छी डिग्रियां लेकर भी घर के बन्धन में सिसकती रहती हैं, बच्चे पैदा करना और रोटी बनाने में उनका जीवन सिमट गया है। शिक्षा का उत्साह दमन चक्रों में फंस गया है।
    नौकरी करके महिलायें धनोपार्जन से परिवार की सहायता करना चाहती हैं परन्तु कभी मार-पीट कर उन्हें बन्द कर दिया जाता है कभी दहेज के कारण जला दी जाती है, पुलिस रुपया लेकर आत्महत्या का केस बना देता है पर कोई नहीं पूछता आत्महत्या का कारण क्या है ? दण्ड से मुक्त व्यक्ति अपने को निर्दोष घोषित करता है।
    जो घर के बाहर निकलती हैं उन्हें बदचलन, चरित्रहीन कहकर लोग अपने को संतुष्टï करते हैं। विधवाओं की दशा और भी दयनीय है घर के भीतर उनका उत्पीडऩ और भी संघर्षशील है। आदर्शों की बात करने वाले उसे मनोरंजन का साधन बना देते हैं यह वैश्या बनाकर उसको बेचते और खरीदते हैं। दलित महिलाओं की स्थिति तो और भी भयानक है। गरीबी और अशिक्षा के कारण वह नगरों और देहातों में काम करने के कारण पूंजीपतियों और व्यापारियों के द्वारा सतायी जाती हैं उनको कम सुविधायें प्राप्त होती हैं और आवाज उठाने पर कठोर दण्ड के साथ शारीरिक उत्पीडऩ भी सहना पड़ता है। शिक्षा बहुत मंहगी हो गई है अब ये डोनेशन नोमनेशन और प्रमोशन के घेरे में फंस गई हैं। विद्यालय दुकान बन गये हैं जहां शक्तिशाली और रईस घरों के बच्चे सुख भोगते हैं और रैगिंग आदि से पथभ्रष्टï हो जाते हैं, यह कैसा भविष्य बनाये गये ईश्वर ही जानें। गरीब बच्चों के लिये शिक्षा साक्षतर पर अधिक बल दे रही है। स्कूलों की हालत जर्जर है वातावरण प्रदूषित है पर अध्यापक, अध्यापिकाओं का वेतनमुक्त हाथ से सरकार देकर उनसे कर्तव्य कराने में असफल है। बी-एड करके नौकरी को लड़के-लड़कियां भटक रहे हैं। प्राइवेट स्कूल में चार-पाँच सौ की नौकरी करके कभी शिक्षा, कभी अपनी डिग्रियों को देखते है, यह कैसा मजाक उनके साथ हुआ है। 'जीवन में छात्र चौदह वर्ष न्यौछावर करके भटक रहा है न रोटी का पता है न देहरी का पता है। कहां वह सहारा पायेगा क्योंकि वह शिक्षाविद् है वर्तमान शिक्षा की उपज है।Ó वर्तमान समय में हमें बुनियादी चरित्र को जिसमें शिक्षा स्वास्थ्य और मानसिक विकास पर मुख्य ध्यान देना होगा समाज के सुधार के लिये चरित्र-निर्माण को शिक्षा के साथ ही जोडऩा पड़ेगा तभी यह नारी और बाल उत्पीडऩ से मुक्ति पा सकेंगे। क्योंकि गरीब बच्चे पांच साल की उम्र से कमाऊ पुत्र बन जाते हैं उनको शिक्षा के लिये समय नहीं है और माता-पिता को इसका ज्ञान नहीं है। राष्टï्रीय महिला संस्थान इन्हीं उद्देश्यों को लेकर सन् 1975 से लेकर आज कर संघर्षशील है। अध्यक्ष स्व. श्रीमती प्रमिला श्रीवास्तव ने नारी जागृति में विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में नई ज्योति जगाई थी। उनके पुत्र श्री आदर्श कुमार उसी मशाल को लेकर महिलाओं में संगठन और कर्तव्य निष्ठïा से सहयोग प्रदान कर रहे हैं। हम महिलायें और हमारे बच्चे इस दिशा में उनके आभारी हैं।

सम्पर्क सूत्र
प्रांतीय उपाध्यक्ष- राष्टरीय महिला संस्थानसिविल लाइंस,
उरई - 285001 जिला जालौन (उ.प्र.)
फोन : 05162 - 252371


   
   

   




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