बुधवार, 9 मई 2012

जियें कैसे? जियें ऐसे



    - राजकुमार सोनी



वर्तमान समय में आदमी के जीवन में सुख-साधनों के ढेर हैं तथापि आदमी स्वयम् को बहुविध तनावों से घिरा हुआ पाता है। जो सुविधाहीन हैं उनके तनाव तो दिखते भी हैं लेकिन सभी प्रकार की सुविधाओं से मंडित आदमी के तनावों का औचित्य प्रत्यक्ष में समझ में नहीं आता है क्योंकि उसके तनाव उसे प्राप्त हुई भौतिक सुविधाओं में से ही झरते हैं। जो विस्तर पर कंकड़ या काँटे की तरह मन में चुभते रहते हैं। असंतुलित विचार, अनियमित दिनचर्या एवं आत्मानुशासन का अभाव आदमी की आस्तीन में रहने वाले शत्रु हैं जिन्हें समझे बिना शांति तो मिलती ही नहीं है धीरे-धीरे पतन भी हो जाता है। अतएव अपना हित चाहने वाले को अपनी जीवन पद्धति का उचित पुननिर्धारण कर लेने में ही भलाई है। श्रीमती कांति जैन ने अपने प्रस्तुत आलेख में जीवन जीने की ऐसी ही विचारनिष्ठï कला को निरूपित किया है।
जीने के तरीकों में लगातार बदलाव आ रहा है- हम अपने तौर तरीकों में बदलाव लाकर तनाव मुक्त हो सकते हैं, साथ ही अपने जीवन को आनंदमय बना सकते हैं। जीवन में थोड़ा सा संयम, थोड़ा अनुशासन, थोड़ा सा संतुलन का समावेश हो तो जीवन को रसीला और खुशबूदार बनाया जा सकता है।
    आज हमारा पूरा समाज परिवर्तन के बहुत बड़े दौर से गुजर रहा है। समाज और परिवार के टुकड़े-टुकड़े होते जा रहे हैं। आदमी भीड़ में अकेला है-अपने परिवार में रहकर भी अकेला है- मंदिर जाता है फिर भी अकेला है। साधुओं के पास तो जाता है लेकिन समाधान नहीं है। अपने सुख-दु:ख को कहने-सुनने, मन को हलका करने, हार-जीत को अपने में बाँटने के लिए अब उसके पास कोई भी नहीं है। उसे अपना रास्ता, अपनी मंजिल स्वयं तलाश करनी है। रोज-रोज के दबाव,संस्कार और सामाजिक मूल्यों को लेकर छिड़ा द्वंद, इच्छाओं और कर्म के बीच की खाई, क्षमताओं के प्रतिकूल लक्ष्य की उच्चाकांक्षाऐं-जरूरत से ज्यादा काम, अनियमित अधूरी नींद,झुंझलाहट,घमण्ड-हर जगह बढ़ती होड़ व प्रतिस्पर्धा ने आम आदमी को तनाव ग्रस्त बना दिया है।
    हम अपने जीवन में भारतीय जीवन पद्धति से जीने के तरीकों को अपनाकर, छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखकर अपने आपको अनचाहे तनाव से उवार  सकते हैं। सुबह उठते ही उगते सूर्य के दर्शन करें, समूचे दिन के कामों की तालिका व्यव्यस्थित कर लें, दो गिलास ठंडा पानी पिऐं, थोड़ी देर टहलें , यदि स्वाध्याय करने का अभ्यास और शौक है तो कुछ समय उसमें लगाएं। अब जितना समय उपलब्ध है उसके अनुसार प्राथमिकतायें तय करके सुनियोजित ढंग से कामों को निपटाएं। हम पाते हैं -हमारी क्षमताएं दिन के प्रहर के हिसाब से प्रभावित होती हैं। अत: जिन कार्यों के लिए हमें अधिक ऊर्जा की जरूरत न हो उन्हें हम किसी ऐसे समय पर कर सकते हैं जब हमारा मन पूर्ण वेग में न हो। मुश्किल काम तब करें जब दिलो-दिमाग एक दम ताजा हो। हर व्यक्ति की अपनी-अपनी क्षमताएं एवं सीमाएं होती हैं। इन्हें ठीक-ठीक जानना-समझना जरूरी है। किसी भी प्रकरण में क्षमताओं से ज्यादा आंकाक्षाएं संजोना गलत है, कार्यालय हो या घर अथवा सगे-सम्बधी-सबकी अपनी-अपनी सीमाएं होती हैं। यह भी याद रखना चाहिए कि शालीनता और विनम्रता भी जरूरी है। यदि आप अधिकारी हैं तो अपने अधीनस्थ कर्मचारियों का ध्यान रखें तभी वे पूरी मेहनत और लगन से काम करेंगे। अधूरे मन से किये गए कार्य अधूरे ही रह जाते हैं।
    एक सच्चा गुरु साधना द्वारा मन और तन को जीतने का रास्ता दिखा सकता है। साधना-योग, व्यायाम तन को जीतने का रास्ता दिखा सकता है। जीवन को संयत, संतुलित बनाने के लिए अनुशासन जरूरी है, उसमें पारंगत होने के लिए लगन जरूरी है। जो लोग काम में रुचि नहीं लेते वे सकारात्मक कम नकारात्मक अधिक होते हैं। नकारात्मक विचार आदमी को नाकारा बनाते हैं। सरकारी कार्यालयों का नाम लेते ही लोग नाक-भोंह सिकोडऩे लगते हैं और सोच बना लेते हैं सैकड़ों चक्कर लगाने ही पड़ेंगे। जबकि सभी जगह ऐसा नहीं होता है, न ही सभी जगह ऐसे लोग होते हैं। सुविधाओं के शिकंजे हमारे चारों ओर हैं। बस, देखना है कि हम इनका कितना शिकार हो रहे हैं। चिलचिलाती धूप में ठंडक चाहिए। घर में कूलर बेकार हो गया है अब तो ए.सी. का बटन दबाया ठंडक मिलने लगी। दूसरे शहर में सहेलियों-मित्रेंा-बच्चों तथा दोस्तों से बात करनी है तो मोबाइल में नम्बर दबाया और हो गई बात। जोडऩे घटाने में दिमाग पर अब जोर नहीं पड़ रहा है। कैलकुलेटर को यह भार सौंप दिया। लिखने-पढऩे और सुरक्षित रखने का काम कम्प्यूटर को सौंप दिया। इंटरनेट पर चैटिंग और जानकारियाँ लेने का काम सुविधा जनक हो गया। यहाँ तक कि रसोई के भी काम भी तमाम आज मशीनों के हवाले हैं। इस तरह हम नित नई सुविधाओं की गिरफ्त में फंस रहे हैं। इन सभी सुविधाओं को पूरा करने के लिए अतिरिक्त धन चाहिए। धन जुटाने की योजनाएं और उन पर अमल चाहिए।
    जिन लोगों के पास अपना निजी चार पहिया, दो पहिया वाहन, मोबाइल, कलर टी.वी., इंटरनेट सुुविधा युक्त कम्प्यूटर इत्यादि सामान नहीं है उनके बारे में आपका क्या ख्याल है? क्या उनकी जिंदगी बेकार है। जिन लोगों के पास ये तमाम आधुनिक चीजें नहीं हैं वे ही लोग ज्यादा खुश हैं, शांत हैं।
    सुुविधाओं का उपयोग करना तो ठीक है लेकिन उनका गुलाम होना ठीक नहीं है। सुविधाओं का शिंकजा कहीं आपका गला तो नहीं दबा रहा है? यदि सुविधाओं का शिंकजा आपको छू नहीं पा रहा है, तनावग्रस्त नहीं बना रहा है तो आप सुखी है।
    स्थितप्रज्ञ होकर जीवन का आनंद लेना सच्चा आनंद है। यदि सुविधाएं उपलब्ध हैं तो भी ठीक है यदि नहीं मिलती हैं तो भी ठीक...। जब सरकारी अधिकारी अपने महत्वपूर्ण पदों से सेवानिवृत्त होते हैं तो उनको मिलने वाली बहुमुखी सुविधाएं भी सेवानिवृत्त हो जाती हैं। तब मन में क्लेश, अशांति, तनाव धीरे-धीरे सताने लगते हंै। सेवानिवृत्ति के सत्य को कुछ वर्ष पूर्व ही स्वीकरना चाहिए और स्वावलंबी होने की भी आदत डाल लेनी चाहिए। ''हमने ही शरीर, धन व पदार्थों को अपना माना है पर इन्होंने हमें अपना नहीं माना है। यदि इन्होंने हमें अपना माना होता तो धन जाते समय बिना कहे नहीं जाता, शरीर हमारा होता तो हम उसे बीमार ही न पडऩे देते एवं सदा स्वस्थ रखने में सफल हो जाते, पर ऐसा नहीं होता है। जब हम आए थे तो साथ एक धागा भी साथ नहीं लाए थे। जो कुछ मिला है - लिया है वह हमने संसार से ही यहीं लिया है अत: इसे संसार की सेवा में ही लगा देना है, उससे अपनापन उठा लेना है और कोई आशा-अपेक्षा नहीं करनी है। यही सच्चे जीवन जीने का मूल सूत्र है।ÓÓ



                                     

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें