रविवार, 13 मई 2012

छत्तीसगढ़ के जीवंत इनसाक्लोपीडिया - डॉ. विनय कुमार पाठक


 - राजकुमार सोनी

छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य और संस्कृति पर आधारित अनेकानेक स्थापनायें प्रदान कर डॉ. विनय कुमार पाठक जीवंत इनसाइक्लोपीडिय़ा के रूप में अभिहित हैं। स्वतंत्रता के पश्चात छत्तीसगढ़ी पत्रकारिता को प्रोन्नत करके, प्रयास प्रकाशन के द्वारा मंच और प्रकाशन का पट अनावृत करके, छत्तीसगढ़ी कविता में मौलिक सांस्कृतिक उपमानों व प्रतीकों का उपयोग करके, छत्तीसगढ़ी लोककथात्मक कहानियों को समृद्ध करके, छत्तीसगढ़ी में समीक्षा संस्मरण और जीवनी का प्रवर्तन करके, छत्तीसगढ़ी शब्दों और स्थान -नामों पर प्रमाणिक शोध करके, छत्तीसगढ़ी साहित्य का क्रमबद्ध इतिहास लिख करके, लोकसाहित्य पर महत्वपूर्ण कार्य करके, लोक सांस्कृतिक कार्यक्रमों के द्वारा जन-मन में लोकजीवन व लोकसंगीत का मिठास घोलकर जिस एक व्यक्ति ने अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया है, उसे लोग डॉ. विनयकुमार पाठक के रूप में जानते हैं। इन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा, साहित्य और संस्कृति में शोध और समीक्षा के द्वारा जहां नव्यालोचन का पथ प्रशस्त किया है, वहीं हिन्दी और भाषा विज्ञान में पी-एच.डी. व डी. लिट् की दोहरी उपाधि प्राप्त कर अकादमिक ढंग से अखिल भारतीय स्तर पर कीर्तिमान स्थापित किया।  इन्होंने छत्तीसगढ़ी में स्वत: कार्य किया और अन्यान्य लोगों को प्रेरित कर एक युग को प्रवाहित किया। इस आधार पर ये छत्तीसगढ़ी साहित्य के युगप्रवर्तक कहलाते हैं। इस दृष्टिï से इनके छत्तीसगढ़ी प्रदेश पर जहां रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर में पी-एच.डी. का कार्य हुआ है, वहीं राँची विश्वविद्यालय राँची (झारखण्ड) द्वारा डी. लिट् का कार्य हुआ है। इस तरह डॉ. पाठक देश के ऐसे प्रथम व्यक्ति हैं जिनके जीवन काल में पी-एच.डी. और डी.लिट् का कार्य हुआ है। छत्तीसगढ़ी शब्दकोश में आपने गुरुदेव डॉ. पालेश्वर प्रसाद शर्मा व डॉ. रमेशचन्द्र महरोत्रा के साथ सह संपादन सहयोग भी दिया है। इस ग्रंथ को विलासा कला मंच ने प्रकाशित किया है। डॉ. पाठक विलासा कला मंच के संरक्षक भी हैं। आज सभी अपने लिए करते हैं लेकिन डॉ. पाठक ही ऐसे व्यक्ति हैं जो दूसरों के लिए संकलित होते हैं। इनके इस अवदान को पंडित द्वारिका प्रसाद तिवारी 'विप्रÓ ने भारतेन्दु साहित्य समिति द्वारा प्रकाशित स्मारिका में अभिव्यक्त किया है जो ''छत्तीसगढ़ी साहित्य को डॉ. विनय पाठक की देनÓÓ (1981) में प्रकाशित है। छायावाद के प्रवर्तक पंडित मुकुटधर पाण्डेय छत्तीसगढ़ी काव्य में प्रेरणा स्रोत के रूप में जिनके महत्व को स्वीकारा है, उनमें डॉ. पाठक एक हैं। छत्तीसगढ़ी के महाकवि स्व. कपिलनाथ कश्यप ने छत्तीसगढ़ी में  ''श्रीरामकथाÓÓ महाकाव्य के प्रणयन के लिए डॉ. पाठक के प्रोत्साहन का स्मरण करते हैं। इसके साथ उनके समकालीन और बाद की नयी पीढ़ी को उनके युगप्रवर्तनकारी प्रदेय को स्वीकारती ही है। स्वतंत्रता के बाद इस दिशा में सर्वाधिक कार्य करने व कराने वालों में डॉ. पाठक एकमेव हैं। डॉ. पाठक का छत्तीसगढ़ी प्रदेश महत्वपूर्ण है, उनकी हिन्दी सेवा भी कम उल्लेखनीय नहीं। हिन्दी प्राध्यापक के रूप में अत्यन्त लोकप्रिय व आदर्श आचार्य के रूप में अभिहित डॉ. पाठक के शोध निर्देशन में तीन दर्जन लोगों ने पी-एच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। शताधिक कृतियों के लेखन, संपादन व प्रकाशन के साथ महत्वपूर्ण शोध आलेखों का प्रकाशन हिन्दी की धरोहर है। डॉ. पाठक देश के अनेक विश्वविद्यालयों में विद्वान वक्ता, स्रोत पुरुष व पी-एच.डी. तथा डी.लिट् के परीक्षक के रूप में आमंत्रित किए जाते हैं। आपको 18 सितम्बर 2002 को दिल्ली में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में सहस्राब्दि हिन्दी सेवी राष्टï्रीय सम्मान से अलंकृत किया गया है तथा ऐतिहासिक साहित्यिक ग्रंथों में इनके प्रदेश की प्रस्थापना व परिचय की प्रतिष्ठïा पाना है। समाज सुधार में अग्रणी सत्यार्थ प्रकाश, कपिलनाथ कश्यप : व्यक्तित्व-कृतित्व, बृजलाल शुक्ल: व्यक्तित्व-कृतित्व के साथ इनकी महत्वपूर्ण समीक्षात्मक कृति पंत के गीत का संगीतशास्त्र विश्व पुस्तक मेले में जनवरी 2002 को लोकार्पित हुई जिसमें संगीत का विवेचन डॉ. कावेरी दाभडकर ने किया है। इसी क्रम में पं. मुकुटधर पाण्डेय पर एक ग्रंथ प्रकाशनाधीन है तथा महिला लेखन पर स्वतंत्र आलोचनात्मक कृति नयी स्थापना के रूप में सामने आई है।
    हिन्दी व्यंग्य कर्म एवं समकालीन परिदृश्य का संपादन करके व्यंग्य के क्षेत्र में आपने अभिनव कार्य किया है। जो शोध-संदर्भ के रूप में स्वीकृत है इसके बाद भी अनेक हिन्दी और छत्तीसगढ़ी के पक्ष हैं जो कलेवर और सीमा की दृष्टिï से छूट गये हैं।

पाठक जी का जन्‍म 11 जून 1946 को बिलासपुर में हुआ और अध्‍ययन भी बिलासपुर में ही हुआ, डॉ. विनयकुमार पाठक जी नें एम.ए., हिन्‍दी एवं भाषा विज्ञान में दो अलग अलग पी.एच.डी. व हिन्‍दी एवं भाषा विज्ञान में दो अलग अलग डीलिट की उपाधि प्राप्‍त की है. इनके निर्देशन में कई पीएचडी अब तक हो चुके हैं. इनको लेखन के लिए प्रेरणा इनके बड़े भाई डॉ. विमल पाठक से मिली है । डॉ. विनय कुमार को इनके पी.एच.डी. एवं डी. लिट प्राप्‍त करने से साहित्‍यजगत में राष्‍ट्रव्‍यापी ख्याति प्राप्‍त हुई। 
पाठक जी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी, दोनों में लिखते हैं। इनकी कृतियां हैं - छत्तीसगढ़ी में कविता व लोक कथा, छत्‍तीसगढ़ी साहित्‍य और साहित्‍यकार, बृजलाल शुक्‍ल व कपिलनाथ कश्‍यप - व्‍यक्तित्‍व एवं कृतित्‍व(दोनो अलग अलग ग्रंथ), स्‍केच शाखा (जीवनी), खण्डकाव्य - सीता के दुख तथा छत्तीसगढ़ी साहित्य और साहित्यकार संस्मरण जीवनी, आदि लगभग 70 ग्रंथ के अलावा इन्‍होंनें अनेक निबंध लिखे हैं। इनकी छत्तीसगढ़ी लोक कथा (1970 ) छत्तीसगढ़ के स्थान-नामों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन (2000 ) बहुत ही महत्वपूर्ण है। पाठक जी ने राष्‍ट्रीय एवं अतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अनेकों शोध पत्र पढें हैं. छत्‍तीसगढ़ी भाषा साहित्‍य एवं संस्‍कृति को अकादमिक ढंग से स्‍थापित करने के परिपेक्ष्‍य में शताधिक साहित्तिक, सांस्‍कृतिक व सामाजिक संस्‍थाओं से उन्‍हें लोकभाषा शिखर सम्मान सहित सम्मान और पुरस्कार मिले है।पाठक जी प्रदेश के शिखर शोध निदेशक हैं, इन्‍होंनें दो दर्जन शोधार्थियों को छत्‍तीसगढ़ी भाषा/साहित्‍य की विभिन्‍न विधाओं में पी.एच.डी. करवाया है. रांची विश्‍वविद्यालय से इनके स्‍वयं के व्‍यक्तित्‍व एवं कृतित्‍व में शोधार्थियों द्वारा डी.लिट. किया जा चुका है.  
संप्रति - शासकीय कन्‍या स्‍नातकोत्‍तर महाविद्यालय, बिलासपुर में हिन्‍दी के विभागाध्‍यक्ष.

संपर्क : डॉ. विनय कुमार पाठक
निदेशक प्रयास प्रकाशन
सी 62, अज्ञेय नगर
बिलासपुर
मेरे ध्‍यान में आदरणीय डॉ. विनय कुमार पाठक की अधिकतम समीक्षात्‍मक लंबी हिन्‍दी गद्य रचनांए ही हैं जिनके अंशों को अवसर मिलने पर यहां प्रस्‍तुत करने का प्रयास करूंगा. आज उनके जन्‍म दिन पर उन्‍हें शुभकामना देते हुए उनके द्वारा रचित यह छत्‍तीसगढ़ी गीत प्रस्‍तुत कर रहा हूं -
जिहॉं जाबे पाबे, बिपत के छांव रे
हिरदे जुडा ले आजा मोर गॉंव रे .
खेत म बसे हवै करा के तान
झुमरत हावै रे ठाढ़े-ठाढ़े धान.
हिरदे ल चीरथे रे मया के बान
जिनगी के आस हे रामे भगवान .
पिपर कस सुख के परथे छांव रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे.
इंहा के मनखे मन करथे बड़ बूता
दाई मन दगदग ले पहिरे हें सूता.
किसान अउ गौंटिया, हावय रे पोठ
घी-दही-दूध पावत, सब्‍बे रे रोठ.
लेबना ला खांव के ओमा नहांव रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे.
हवा हर उछाह के महमहई बगराथे
नदिया हर गाना के धुन ला सुनाथे.
सुरूज हर देथे, गियान के अंजोर
दुख ला भगाथे, सुघ्‍घर वंदा मोर.
तरई कस भाग चमकय, का बतावौं रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे.
मेहनत अउ जांगर जिहां हे बिसवास
उघरा तन, उघरा मन, हावै जिहां आस.
खेत म चूहत पछीना के किरिया
सीता कस हावै, इंहां के तिरिया.
ऐंच-पेंच जानै ना, जानैं कुछ दांव रे
हिरदे जुडा़ ले, आजा मोर गांव रे.

email : rajkumarsoni55@gmail.com 
My blog's
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