बुधवार, 9 मई 2012

प्रशासनिक कार्य में राजभाषा हिन्दी के कार्यान्वयन


- राजकुमार सोनी


प्रशासनिक कार्य में राजभाषा हिन्दी के कार्यान्वयन को वर्तमान में सामाजिक एवं राष्टï्रीय भावबोध के रूप में शासकीय मान्यता प्राप्त है। चूंकि भाषा सरकार व जन साधारण के बीच में संवाद प्रेषण का माध्यम बनती है अतएव यह आवश्यक है कि प्रशासकीय कार्य में उपयोग की जाने वाली हिन्दी सरल, सहज तथापि संस्कारयुक्त एवं भाषा के मान्य नियमों के अनुकूल हो। इस दृष्टिï से स्वतंत्रता के पश्चात जनसाधारण की दृष्टिï से हिन्दी का जो सरल एवं सहिष्णु स्वरूप विकसित हुआ है वह राजभाषा हिन्दी या प्रशासनिक हिन्दी के रूप में परिभाषित किया गया है। श्री जय प्रकाश सक्सेना जी ने प्रस्तुत आलेख में राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक पृष्ठभूमि एवं उसके प्रशासनिक स्वरूप को रेखांकित किया है, साथ ही प्रशासनिक कामकाज की तात्कालिक आवश्यकता के संदर्भ में मूलत: अंग्रेजी कार्य को भी हिन्दी माध्यम से द्विभाषी सम्पन्न करने की युक्तियों की ओर भी इंगित किया। अपेक्षा है कि यह आलेख पाठकों की जानकारी को आलोकित करेगा - सम्पादक।
संविधान के लागू होने के साथ-साथ 26 जनवरी 1950 से संविधान की धारा 343 के अनुसार हिन्दी भारत संघ की राजभाषा बनी। धारा 351 में भारत सरकार को यह कर्तव्य सौंपा गया है कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाये एवं विकास करे ताकि हिन्दी भाषा सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके। सरकारी कामों में इसका इस्तेमाल सुनिश्चित करने के लिये राष्टï्रपति जी ने सन् 1952 में कुछ कामों में हिन्दी के  इस्तेमाल के लिये आदेश जारी किये। फिर 1955 में भी आदेश जारी किये गये। 27 अप्रैल 1960 को राष्टï्रपति जी ने विस्तृत आदेश जारी किये। इसके पश्चात राजभाषा अधिनियम 1963 बना और 1967 में इसका संशोधन भी हुआ। गृह मंत्रालय में राजभाषा विभाग बन जाने के पश्चात राजभाषा नियम 1976 बने और सभी क्षेत्रों में देश की राजभाषा हिन्दी को लागू करने के लिये जागृत भावना के अनुकूल सरकारी कामकाज में हिन्दी का प्रयोग होने भी लगा जो निरन्तर बढ़ रहा है।
    आदेशों का संकलन सन् 1974 में निकाला गया, दूसरा संस्करण 1980 में और तीसरा संस्करण 1986 में प्रकाशित हुआ। नियम 4 के परन्तुक (1) के अनुसार क्षेत्र 'कÓ, 'खÓ में स्थित किसी कार्यालय को संबोधित पत्र का अनुवाद दूसरी भाषा में भेजने की आवश्यकता नहीं है, जबकि परन्तुक (2) के अनुसार क्षेत्र 'गÓ में स्थित केन्द्रीय सरकार के दूसरे कार्यालयों को यदि पत्र हिन्दी में भेजा जाता है तो उसका अंग्रेजी भाषा में अनुवाद उसके साथ भेजा जाए।
    अधिनियम की धारा 3 (3) के अनुसार दस्तावेज आदि हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषा में दिये जावें। अधिनियम की धारा 5 के अनुसार नियम, विनियम या किसी उपविधि का राजपत्र में प्रकाशित हिन्दी में अनुवाद उसका हिन्दी में प्राधिकृत पाठ माना जाता है।
    अब अनेक सरकारी कार्यालयों में हिन्दी का प्रयोग होने लगा है। आशा है कि हिन्दी में कार्य की सीमा धीरे-धीरे बढ़ती जाएगी। हिन्दी में काम की शुरूआत होना अच्छी बात है, किन्तु इससे कभी-कभी उन व्यक्तियों को कठिनाई होती है जो हिन्दी अधिक नहीं जानते हैं। कारण यह है कि अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी में पर्याय देने वाले अनेक शब्दकोष हैं लेकिन हिन्दी के प्रशासनिक शब्दों के अँग्रेजी पर्याय देने वाले अच्छे शब्दकोष उपलब्ध नहीं हैं। ऐसी स्थिति में हिन्दी के पत्र कम हिन्दी जानने वालों के पास पहुँचते हैं तो उन्हें उनका ठीक आशय समझने में कठिनाई होती है। अतएव प्रशासकीय कार्य में साधारणत: बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया जावे।
    सरकारी पत्राचार के विभिन्न रूप पत्र, परिपत्र, कार्यालय ज्ञापन, अर्धशासकीय पत्र, अनौपचारिक टिप्पणी, पृष्ठïांकन, अधिसूचना, संकलन, प्रेस, विज्ञप्ति, तार, मितव्यय पत्र, कार्यालय आदेश एवं अनुस्मारक हैं। इन सभी में हिन्दी में कार्य करना आसान है। सरकारी क्षेत्र में समय की कमी के कारण अधिकारियों को पत्र व्यवहार का विस्तार पूरी तरह पढऩा असंभव होता है। अत: आवश्यक है कि जिन मामलों पर उन्हें निर्णय या आदेश देना हो, उसके संबंध में पूरी सामग्री थोड़े से थोड़े शब्दों में प्रस्तुत हो जाये, जिससे उन्हें विषय का शीघ्र और सही ज्ञान प्राप्त हो सके। अत: प्रशासनिक कार्य में हिन्दी के सारलेखन का भी अपना पृथक महत्व है। इसका क्षेत्र सरकारी कामकाज तक ही सीमित नहीं है, बल्कि, पत्रकारिता, शिक्षा, न्यायालय आदि के क्षेत्रों में भी इसकी उपयोगिता छिपी नहीं है। सारलेखन का कौशल इसी में है कि वह विषय के विस्तार को सीमित और संक्षिप्त आकार में प्रस्तुत करे तथा मूल के मुख्य भावों की अभिव्यक्ति अवश्य हो जावे।
    प्रशासनिक कार्य में हिन्दी के अनुवाद का भी उल्लेखनीय महत्व है। क्योंकि जहाँ अंग्रेजी पत्र की विषय वस्तु को आधार बनाकर हिन्दी माध्यम से कार्यवाही करनी होती है अथवा जहाँ द्विभाषी पत्र व्यवहार करना होता है या धारा 3 (3) के अन्तर्गत आने वाले सभी दस्तावेजों को द्विभाषी जारी करने की आवश्यकता होती है उस स्थिति में कार्य की गति को निर्वाध जारी रखने के लिये तत्काल अनुवाद करने की आवश्यकता उपस्थित हो जाती है। ऐसे में अधिकारी या कर्मचारी में विद्यमान अनुवाद क्षमता बहुत उपयोगी साबित होती है। प्रशासनिक कार्य में हिन्दी अनुवाद का स्वरूप शब्दानुवाद, भावानुवाद, मिश्रित अनुवाद तथा वैज्ञानिक व तकनीकी अनुवाद जैसे विभिन्न रूपों में होना अपेक्षित है। शब्दानुवाद एक सरल प्रक्रिया है क्योंकि अंग्रेजी के उपयुक्त हिन्दी शब्द मिल जाने पर वाक्य रचना आसानी से हो जाती है। भावानुवाद में शैली से अधिक महत्व विषय का होता है। इसमें भाषा शैली के सौन्दर्य मार्धुय पर ध्यान न देकर विषय के कथ्य को स्पष्टï करना ही पर्याप्त होता है। मिश्रित अनुवाद में हिन्दी की वाक्य रचना में अंग्रेजी के जनसाधारण की बोलचाल में रचे बसे शब्दों को ज्यों का त्यों भी लिखा जा सकता है। यह प्रक्रिया वैज्ञानिक तथा तकनीकी विषयों को हिन्दी माध्यम से प्रस्तुत करने में अधिक सहायक होती है। प्रशासनिक, वैज्ञानिक तथा तकनीकी विषयों के पाठक अथवा उपभोक्ता का आकर्षण भी अनुवाद की भाषा, शैली में न होकर मूल विषय वस्तु को साफ-साफ व्यक्त करने में ही होता है।
    कुल मिलाकर प्रशासनिक हिन्दी के स्वरूप का मूल आधार है छोटे एवं सरल वाक्यों की रचना करना। उदाहरण स्वरूप कुछ वाक्य रचनाएं निम्नानुसार अनुकरणीय हैं :-
छोटे वाक्य - उन पर बताई गई प्रक्रिया इस मामले पर लागू नहीं होगी। कृपया अनुमोदन/मंजूरी प्रदान करें तदनुसार कार्रवाई की जाये। यथा प्रस्तावित कार्रवाई करें। इस बार स्थगन की मंजूरी मिलने की संभावना नहीं है। पात्रता प्रमाणित की जाती है। मांगी गई छुट्टïी मंजूर की जाये। उत्तर आज भेज दिया जाना चाहिये। इसमें आपका व्यक्तिगत ध्यान अपेक्षित है।
बड़े वाक्य- निदेशक के निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई औचित्य नहीं दिखता है। अनुमोदन के लिये नीचे लिखे मसौदे के अनुसार आवश्यक सूचना निकाल दें। मंत्रालय द्वारा अनुदेश जारी करने में कोई आपत्ति नहीं है।
    कुल मिलकार प्रशासनिक हिन्दी के स्वरूप में शब्द या वाक्यों के आडम्बरपूर्ण प्रदर्शन के लिये कोई गुंजाइश नहीं होती है। प्रशासनिक हिन्दी का प्रारंभिक और अंतिम उद्देश्य अपनी बात जन साधारण तक सरलता पूर्वक पहुँचाना ही होता है।

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